बुधवार, अप्रैल 28

समाज और राष्ट्र के सच्चे सेवक ही ऐसा त्याग कर सकते हैंl

कोरोना महामारी से इस जंग में महाराष्ट्र नागपुर के एक 85 साल के योद्धा ने एक मिसाल पेश की है जो समाज के अन्य लोगों के लिए एक बहुत बड़ी सीख है आज सुबह अपने व्हाट्सएप पर न्यूज़पेपर की खबर को मैंने पढ़ा यह खबर पढ़कर मैं खुद आश्चर्यचकित था कि कैसे कोई व्यक्ति अपने जीवन की प्रभा ना करते हुए दूसरों के लिए अपने जीवन को निछावर कर दिया यह राष्ट्रप्रेम की भावना बहुत कम लोगों में देखने को मिलती है यहां व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए लोगों को नुकसान पहुंचा देता है इसीलिए कहते हैं जीवन में कभी किसी का साथ देने का मौका मिले तो सारथी बनना स्वार्थी नहीं मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से उस महान आत्मा को सादर श्रद्धांजलि देना चाहता हूं । 

खबर नागपुर से हैं जहां एक अस्पताल में महिला को रोता हुआ देखकर उसके पति के लिए अपना बेड दे दिया। उनका कहना था कि मैं अपना जीवन जी चुका हूं  “मैं 85 वर्ष का हो चुका हूँ, जीवन देख लिया है, लेकिन अगर उस स्त्री का पति मर गया। तो बच्चे अनाथ हो जायेंगे, इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मैं उस व्यक्ति के प्राण बचाऊं।'' ऐसा कह कर कोरोना पीड़ित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवक श्री नारायण जी ने अपना बेड उस मरीज़ को दे दिया। 

"खुद से पहले दूसरे, यही संघ की परंपरा"

 'संघ की परंपरा ही खुद से पहले दूसरों के कल्याण की रही है। स्वर्गीय श्री नारायण जी ने जो किया, वह एक स्वयंसेवक की प्राथमिक पहचान है।' संघ अपने स्वयंसेवकों को हमेशा यही सिखाता है जिसे सबसे ज्यादा जरूरत हो उसे सबसे पहले उपलब्ध करवाया जाए अर्थात प्राथमिकता दी जाए और यही स्वर्गीय श्री नारायण जी ने किया।

दूसरे व्यक्ति की प्राण रक्षा करते हुए श्री नारायण जी तीन दिन बाद इस संसार से विदा हो गये। समाज और राष्ट्र के सच्चे सेवक ही ऐसा त्याग कर सकते हैं, आपके पवित्र सेवा भाव को प्रणाम! 

  सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग स्वर्गीय नारायण जी की आत्मा की शांति की प्रार्थना के साथ उनके त्याग की सराहना कर रहे हैं।

आप समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं। दिव्यात्मा को विनम्र श्रद्धांजलि। भगवान आपकी आत्मा को बैकुंठ में अपने चरणों में स्थान दे ओर परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें सुगना फाउंडेशन परिवार की तरफ से सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं ओम शांति शांति शांति 

ॐ शांति!

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