बाड़मेर के रावतसर गांव की एक प्रतिभा की संघर्ष भरी कहानी..
बचपन में पिता का साया उठ गया मां ने भी साथ छोड़ा दादा ने साथ दिया तो हीरों मेघवाल बन गई शिक्षिका। रीट में प्रदेश में एससी वर्ग में 134 वां स्थान हासिल कर लिया।
दोस्तों घर के हालात अपनी आँखों से देखा पर बेटी रुकी नहीं और हालातों से झुकी नहीं.. ग़रीबी तो दुश्मन थी ही बचपन मे माता व पिता दोनों ही इस दुनिया से चल बसे😞 पर बेटी ने हार नहीं मानी.. आखिर पहुंच गयी मुकाम पर और बन गईं अध्यापिका. छु लिया आसमान शाबाश बेटा।
दादा दादी ने पशुपालन करके पढ़ाया इस बेटी को बताते हैं 12वीं क्लास तक घर में रोशनी के नाम पर कुछ नहीं था बिटिया भी इसका श्रेय अपने दादा दादी को देती है टीम सुगना फाउंडेशन की ओर से बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं प्यारी बिटिया को...
किसी ने ठीक ही कहा है जरूरी नहीं घर चिराग़ों से ही रोशन हो,
मैंने शिक्षा से भी घरों को रोशन होते देखा है
अपने बच्चों को शिक्षा की ओर लें जाओ ...
मेहनत करने वालो की कभी हार नही होती
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