शहीद दिवस पर विशेष क्यों है आज का दिन भारत के लिए खास
आज शहीद दिवस है. यह दिन भारत के लिए बहुत खास है. आज ही के दिन स्वतंत्रता की लड़ाई में भारत के तीन सपूतों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हंसकर फांसी की सजा को गले लगाया था। वैसे इनको फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी लेकिन 1 दिन पहले फांसी दे दी गई दी इसका कारण था युवाओं का कहीं उग्र प्रदर्शन ना हो जाए जिससे अंग्रेज लोग डर गए और 1 दिन पहले ही को फांसी दे दी गई।
23 मार्च 1931 मां भारती के लाल वंदे मातरम का नारा लगाते लगाते एवं हंसते हंसते मातृभूमि की रक्षा हितार्थ में फांसी के फंदे से झूल गए । जिनमें भारत की स्वतंत्रता के लिए बहुत संघर्ष किया और युवा बहुत ज्यादा फॉलो करते थे इन्होंने महात्मा गांधी से अलग हटकर बहुत ही कम समय में युवाओं के बीच एक जगह बनाई और देश के आजादी की लड़ाई लड़ी अंग्रेजी शासन घबरा गए घर में देशभर में उग्र प्रदर्शन किया और बहुत ही कम उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
श्री सुखदेव, श्री भगत सिंह, और श्री शिवराम हरीनारायण राजगुरु (राजपुरोहित) इस मातृभूमि की आन बान शान पर अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया ।।
शिवराम हरीनारायण राजगुरु (राजपुरोहित ) का परिवार मूलतः सिरोही अजारी से थे और वह समय अवधि के साथ महाराष्ट्र पुणे के समीप जा बसे थे । उनकी यादगार में पुणे के पास राजगुरूनगर वर्तमान में है ।
राजगुरु से जुड़ी अहम जानकारी
राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था इनका जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे जिला के खेडा गांव में हुआ था। राजगुरु महज 16 साल की उम्र में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए थे ओर 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ सेंट्रल असेम्बली में हमला करने के दौरान राजगुरु भी मौजूद थे ओर इनके सम्मान में इनके जन्मस्थान खेड का नाम बदलकर राजगुरुनगर कर दिया गया था।
हमारी इस खबर की पुष्टि करता यह वीडियो जो कि ईटीवी राजस्थान आप राजपुरोहित समाज इंडिया के यूट्यूब चैनल पर जाकर देख सकते हैं
माँ भारती के अमर सपूत, महान क्रांतिकारी, शहीद शिरोमणि सरदार भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को बलिदान दिवस पर कोटिशः नमन।
सम्पूर्ण राष्ट्र आप सभी के सर्वोच्च बलिदान से प्रेरणा प्राप्त कर राष्ट्रभक्ति की मशाल को सदैव प्रज्वलित करता रहेगा.... टीम सुगना फाउंडेशन और राजपुरोहित समाज इण्डिया
भगत सिंह की फांसी को आजीवन कारावास में बदलने को लेकर अब भी भारत के इतिहासकार खुलकर अपनी बात नहीं कहते। गांधीजी पर यह भार दिया गया था और लोग गांधी से आशा भी करते थे कि वे वायसराय के साथ होनेवाली बैठक में इन चीजों को उठाएं। रिचर्ड एटनब्रो की फिल्म में इसे दिखाया भी गया। गांधी ने वायसराय से एक लाईन में बातचीत किया, नतीजा क्या निकलना था। भगत सिंह को फांसी की सजा बरकरार रखी गई। लेकिन इतिहास रोंगटे खड़ा करनेवाला है। नेशनल आरकाईव्स में रखी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद हर कोई व्यक्ति इतिहास के सभी पन्नों को पढ़ना चाहेगा। कांग्रेस का अधिवेशन होनेवाला था और इसमें गांधीजी को भी भाग लेना था। गांधी ने वायसराय को संदेश दिया कि यदि भगत सिंह को फांसी होना ही है तो फिर पहले ही हो जाए ताकि कांग्रेस का अधिवेशन आराम से हो सके अन्यथा सभी लोग भगत सिंह की ही चर्चा करेंगे। भगत सिंह को फांसी तो हुई परन्तु सिर्फ एक दिन पहले। गांधी कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने के लिए भी गए। परन्तु गांधी के प्रति लोगों में जबर्दस्त नफरत फैल चुकी थी। लोग गांधी को सबक सिखाने के लिए हाथों में डंडे और तलवार लेकर बैठे हुए थे। सरकार एवं गांधी को सारी चीजों की जानकारी मिल गई। गांधी ने भगत सिंह के पिता किशन सिंह से शरण मांगी और वे गांधी को लेकर कांग्रेस के मंच तक पहुंचे। अब किसकी हिम्मत की गांधी को कुछ कह पाए। इससे पहले अधिवेशन स्थल से बीस मील दूर ही गांधी को ट्रेन से उतार लिया गया था ताकि उन पर कोई आफत नहीं आए। यदि इतिहास पलट कर देखी जाए तो गांधी और भगत सिंह में कोई तुलना ही नहीं हो सकती है। गांधी की अलग राह थी और भगत सिंह की अलग राह थी। - साभार इतिहासकार भैरव लाल दास
शत शत नमन
जवाब देंहटाएंसादर..
माँ भारती के अमर सपूत भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को बलिदान दिवस पर शत शत नमन ।
जवाब देंहटाएंवीरों को शत शत नमन
जवाब देंहटाएंभगत सिंह की फांसी को आजीवन कारावास में बदलने को लेकर अब भी भारत के इतिहासकार खुलकर अपनी बात नहीं कहते। गांधीजी पर यह भार दिया गया था और लोग गांधी से आशा भी करते थे कि वे वायसराय के साथ होनेवाली बैठक में इन चीजों को उठाएं। रिचर्ड एटनब्रो की फिल्म में इसे दिखाया भी गया। गांधी ने वायसराय से एक लाईन में बातचीत किया, नतीजा क्या निकलना था। भगत सिंह को फांसी की सजा बरकरार रखी गई। लेकिन इतिहास रोंगटे खड़ा करनेवाला है। नेशनल आरकाईव्स में रखी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद हर कोई व्यक्ति इतिहास के सभी पन्नों को पढ़ना चाहेगा। कांग्रेस का अधिवेशन होनेवाला था और इसमें गांधीजी को भी भाग लेना था। गांधी ने वायसराय को संदेश दिया कि यदि भगत सिंह को फांसी होना ही है तो फिर पहले ही हो जाए ताकि कांग्रेस का अधिवेशन आराम से हो सके अन्यथा सभी लोग भगत सिंह की ही चर्चा करेंगे। भगत सिंह को फांसी तो हुई परन्तु सिर्फ एक दिन पहले। गांधी कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने के लिए भी गए। परन्तु गांधी के प्रति लोगों में जबर्दस्त नफरत फैल चुकी थी। लोग गांधी को सबक सिखाने के लिए हाथों में डंडे और तलवार लेकर बैठे हुए थे। सरकार एवं गांधी को सारी चीजों की जानकारी मिल गई। गांधी ने भगत सिंह के पिता किशन सिंह से शरण मांगी और वे गांधी को लेकर कांग्रेस के मंच तक पहुंचे। अब किसकी हिम्मत की गांधी को कुछ कह पाए। इससे पहले अधिवेशन स्थल से बीस मील दूर ही गांधी को ट्रेन से उतार लिया गया था ताकि उन पर कोई आफत नहीं आए। यदि इतिहास पलट कर देखी जाए तो गांधी और भगत सिंह में कोई तुलना ही नहीं हो सकती है। गांधी की अलग राह थी और भगत सिंह की अलग राह थी।
जवाब देंहटाएं- साभार इतिहासकार भैरव लाल दास
आपकी बात बिल्कुल सत्य है गांधी जी की राह अलग थी और भगत सिंह की राह बिल्कुल अलग मां भारती के इन वीर सपूतों को शत शत नमन
हटाएंमाँ भारती के सपूतों को सत सत नमन ,आप ने सही खा विश्वमोहन जी
जवाब देंहटाएंइतिहास के पन्नों को एक बार फिर से खगालना होगा तभी सत्य बाहर आएगा,सादर नमन
आद. कामिनी जी आपने बिल्कुल सही फरमाया इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से खंगालने की जरूरत है ताकि सत्य बाहर आ सके
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रविंद्र सिंह जी
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