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शुक्रवार, फ़रवरी 21

मैं और मेरी गौ सेवा की प्रेरणा....स्वामी श्री ज्ञानस्वरूपानन्द ‘अक्रियजी‘ महाराज

आज की यह पोस्ट जोधपुर के गौ सेवक से महान संत बने महामंडलेश्वर योगीराज स्वामी ज्ञानस्वरूपानन्द जी महाराज के जीवन के ऊपर लेकर आया हूं कैसे एक साधारण पुरुष से वह महामंडलेश्वर तक का सफर तय किया और आज भक्ति में लीन है गौ सेवा को समर्पित है इनका जीवन विशेष पोस्ट में आप पढ़ें उनके बारे में अभी हाल ही में कुछ समय पहले मेरा जोधपुर जाना हुआ तभी महाराज जी से मिलना हुआ।

श्री श्री 1008 आनन्द धाम पीठाधीष्वर महामण्डलेष्वर
योगीराज स्वामी ज्ञानस्वरूपानन्द ‘अक्रियजी‘ महाराज
मेरे बारे में मुझे लिखना या कहना सचमुच मुझे संकोच में डाल देता है। अपने सन्यास के लिये कहने को तो वैसे विषेष कुछ नहीं है। फिर भी अपने सन्यास के लिये उस परम शक्ति को उस केन्द्रीय सत्ता की करूणा कृपा को ही अपना सर्वस्व धन मानता हुॅ। जब मैं अपने अतीत के पन्नों को पलटता हूूॅ, तो पाता हॅु कि बाल्यकाल में मेरी माँ के संस्कारों का मुझ पर बड़ा प्रभाव पड़ा। वे बहुत धार्मिक स्वभाव की सदगृहस्थ थी। परम षिव आराधक थी, उनकी छत्रछाया में ही रहकर मेरे वैराग्य के भाव पल्लवित हुए और यही मेरे धार्मिक संस्कार कालान्तर में मेरे वैराग्य और सन्यास का कारण बने।

मैं बचपन से ही आम बालको से अलग था साधु संतों की संगत मुझे लुभाती थी। हमेषा गुरू के चरणों में सत्संग, भजन व प्रवचन करता रहा। अनेक संस्थाएं जैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विष्व हिन्दु परिषद, सामाजिक सैना, आखिल भारतीय संत समिति आदि सनातन धर्म की संस्थाओं में अपना समय बिताता रहा और परिवार में गौ पालन की परंपरा को देखते हुए गौ माता के प्रति विषेष रूप से लगाव रखता रहा अपने प्रवचनों में  गौ-माता के लिए हमेषा जय घोष करता रहा, परन्तु हमकों एक बार ऐसा महापुरूष मिले जिसने कहा कि स्वामी जी केवल जय घोष करने से गौ-माता की सेवा नहीं होती है। क्या आपने स्वयं कभी गौषाला में रहकर सेवा की है? हमने कहा, ऐसा तो कभी नही किया। इसके बाद जब मै हरिद्वार आनदं धाम आश्रम में था, तो एक दिन मुझे मेरे शरीर को तीव्र ज्वर (बुखार) आया। और मुझे मलेरिया, टायफाइड जैसी बीमारी लग गई, जिससे मैं ना सो सकता, ना बैठ सकता, ना ही ठीक से खा-पी सकता था। ऐसी गंभीर हालत हुई कि शरीर एक-दम जरजर शक्ति हीन हो गया। मैं अपनी बीमारी की अवस्था में ही जोधपुर आनंद धाम आश्रम आया। कई दिनांे तक इस बीमारी से ग्रसित रहा, कुछ समझ नहीं आता था कि करे क्या? एक दिन ऐसा लगा कि आज रात्रि में शरीर शांत हो जायेगा, तब मैने विचार किया कि आज शरीर छूट ही जायेगा, और  आनंद धाम आश्रम में 2-3 गाये थी, जिनके चरणों मे ही इस शरीर को छोड़ा जाय। यह विचार आते ही मैंने चटाई उठाई और गायों की ओर जाने लगा तो आश्रम के लोगों ने कहा ’’स्वामी जी’’ गौ माता आपके ऊपर पैर रख देगी तो  दिक्कत हो जायेगी, तब मैंने कहा आज  वैसे भी शरीर छुटने वाला हैं,। गौ माता स्वयं मेरी रक्षा करेगी नही ंतो ये शरीर छूट जायेगा, जिससे  मै गौ लोक धाम चला जाऊंगा और मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी। ऐसा कहने के बाद मैं गायों के पास गया, चटाई जमीन में डालकर, गौ माता के सिर की रस्सी यह कहते हुए खोल दिया कि माता आपको चारा-पानी देने वाला, आपकी सेवा करने वाला, मेरा शरीर ही नहीं रहेगा। मुझे इस आश्रम में आपकी सेवा करने वाला कोई दिखाई नहीं देता, इसलिए इस आश्रम से आपको आज से स्वतंत्र करता हॅू। मैंने इस आश्रम में आपको आश्रय दिया था और मेरा शरीर आज जा रहा है, इसलिए मेरी तरफ से आपको कोई बंधन नहीं’ बस ऐसी प्रार्थना करते हुए मैं चटाई पर दोनों हाथ पैर फैलाकर कंबल सीने पर डालकर लेट गया।

 गौ मातायें मेरे चारों तरफ घूमती रही करीब आधे घण्टे बाद एक गौ माता ने मेरे हाथ की हथेलियों को चाॅटना शुरू कर दिया, दूसरे ने मेरे पैर के तलवे को चाॅटना शुरू किया । कुछ देर तक चाॅटते रहने के बाद मुझे नींद आ गयी और मैं सो गया। लगभग सुबह सवा पाॅच बजे मेरीे नींद खुली तो मुझे लगा कि मैं एक दम स्वस्थ्य और तन्दुरूस्त हॅू ऐसी दिव्य अनुभूति  हुई जो किसी चमत्कार से कम नही थी। फिर मैंने अपने आस पास देखा तो एक गौ माता मेरे पैरांे कि तरफ तो दूसरी  सिर की तरफ बैठकर जुगाली कर रही थी। मैं खड़ा होकर गौ माता को प्रणाम किया, प्रार्थना किया और उसके सिर पर रस्सी बाॅंधकर वापस उसके ठिकाने पर बाॅध दिया। मैं वापस आश्रम में आया, नित्यकर्म करने के पष्चात विचार किया कि गौ माता ने यह जीवन दान दिया, अब इस जीवन को सिर्फ गौसेवा में ही लगायेंगे। मैने संकल्प लिया कि इस समय का शेष जीवन है उसका सद्उपयोग करेंगे, और सिर्फ गौ माता के चरणों की सेवा ही करेंगें। संकल्प को सिद्ध करने के लिए न मेरे पास धन था, न जमीन थी और न ही कोई साधन था। मैंने गौ माता से ही प्रार्थना किया कि आप मुझसे सेवा कराना चाहती हो, तो आप ही व्यवस्था करो। इसके कुछ ही दिनों बाद आश्रम में  एक सेठ और एक संत जी पधारे और उन्होंने कहा कि ’स्वामी जी’ मेरे पास एक गौषाला की जगह है और उसमें कुछ गौ वंष भी है उसको आप ही संभाले या उसको आप स्वीकार करें, उनकी सेवा करने वाला कोई नही है  और उस गौ वंष का जीवन बड़ा दयनीय है। तो संत जी, सेठ जी को मैने उनसे कहा कि गौसेवा के लिए मेरे पास कोई धन संपत्ति या ऐसे भक्त नहीं मै इतनी बड़ी सेवा नही कर सकता। ऐसा कह कर के मैं चुप हो गया, और कुछ दिनों के बाद फिर से संत जी वह नगर के वरिष्ठ अनेक लोग मेरे पास पधारे और मुझसे प्रार्थना की एक बार आप हमारे साथ चले। मै उनके साथ गया और देखा कि वहां पर गौ वंष बड़ा कमजोर है उनके पेट की हड्डिया बाहर दिख रही है, यह दृष्य देखकर मेरे हृदय में करूणा के भाव उमड़ आये और मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। इतने मंे एक सेठ जी ने कुछ पैसे निकाले और कहा कि स्वामी जी  इसे स्वीकार करें, तो मैंने कहा कि आप मुझे पैसे न दीजिए कृपा करके आप चारा मंगवा दीजिए। यह सुनकर वहाॅ उपस्थित लोगो ने चारा भेजने का निष्चय किया और चारा आना शुरू हो गया। तब से उस गौ वंष के लिए चारा आने लगा। इसके बाद हमने देखा वह गौ वंष जो निराश्रित हैं, जिससे लोंगो को कुछ भी नहीं मिलने वाला था ऐसे गौ वंष कि जो बेसहारा हैं, भटक रहा है, जिनको घरो से लोगो ने निकाल दिया है। जो दर-दर की ठोकरे ंखा रही है, कूड़े-करकट और गंदगी पर अपना पेट भरने के लिए मजबूर हो रही है, ऐसी लूली, लगड़ी बुढ़ी, अंधी, तीन पैर और नंदी तोगड़े गाये जो भटक रही हैं, ऐसे गौ वंष की सेवा करने का निष्चय किया। सच कहूं तो मुझे ऐसे गौ वंष की सेवा करने में बड़ा ही आनन्द आता है। 


आप भी कभी आनंद धाम आलख ज्ञान गौ रक्षा समिति ( महादेव गौषाला और आनंद धाम गौषाला ) पाल बोरनाडा रोड जोधपुर में आकर देखिए इस तरह के गौ वंष है, जिनको देखकर स्वतः ही आपके हृदय में अपने आप ही ऐसा भाव आयेगा जिससे आप को स्वयं भगवत स्वरूप परमात्मा दिखाई देने लगेगा। तब से मेरे मन में ऐसा लगता है कि मेरा कुटुम्ब, परिवार सब कुछ मुझे गौमाता या गौ वंष में ही दिखाई देता है। कुछ भी कमी नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूॅ। गौमाता स्वयं अपनी व्यवस्था करवा रही है, मुझे तो केवल निमित्त मात्र बनाया है। भगवान के लिए भी कहा है कि सबकुछ करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है’ बस इन्हीं विचारों से गौमाता अपनी सेवा स्वयं करती है। मैं और आप निमित्त है। मानव जीवन होने के नाते हमारा आपका कर्तव्य है कि गौमाता की सेवा के लिए, गौ रक्षा के लिए हमें हमेषा तन-मन-धन से तत्पर रहना है। यह बड़े ही दुख की बात है कि देष और दुनिया में  गौ वंष की अंधाधुध हत्या हो रही है। इसे शासन-प्रषासन,जनप्रतिनिधियों द्वारा  भी रोकने के ठोस प्रयास नहीं कर रहें है। जिसके कारण अनेक प्रकार की विषमताएं और कठिनाइयां उत्पन्न हो रही है। 

मेरा ऐसा मनना है  जैसे ही गौ वध  होना बंद हो जाएगा कत्लनखाने बंद हो जाएगें। वैसे ही हमारा देष सुखी, समृद्धषाली हो जाएगा। बस  अब तो इसी संकल्प के साथ मेरा जीवन बीत रहा है। यही मेरी पूजा है, यही मेरा धर्म और यही मेरा कर्म है।   और हमारी अंतिम इच्छा है कि गौ माता राष्ट्रीय गौ माता घोषित हो तो इनकी हत्या अपने आप बंद हो जाएगी। यही गौ हत्या रोकने का अंतिम उपाय है।
                         
           
                   
                       
 इस बछड़े की मां जन्म देकर मर गई है इसको महामंडलेश्वर जी अपने हाथों से दूध पिला कर इंसान के बच्चों की तरह सेवा करते हैं यह बछड़ी बहुत भाग्यशाली है                             
हरिओम् तत्सत्।
 स्वामी अक्रियजी महाराज

फिर मिलेंगे किसी पोस्ट के साथ तब तक के लिए मुझे दीजिए ज्यादा आपका दोस्त सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन और आरोग्यश्री समिति

1 टिप्पणी:

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    1) Grab a glass and fill it up half full

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सवाई सिंह को ब्लॉग श्री का खिताब मिला साहित्य शारदा मंच (उतराखंड से )