कानून द्वारा परिभाषित उम्र जो कि बालकों के लिये 21 वर्ष और बालिकाओं के लिये 18 वर्ष है, से कम उम्र में, किया गया विवाह, बाल-विवाह है। यह तो एक सामान्य तकनीकी परिभाषा है लेकिन इसकी व्यापकता और विकरालता को हम इस तरह से समझ सकते हैं कि बालविवाह, बच्चों के सभी बाल अधिकारों का उल्लंघन करता है । यह बच्चे के शिक्षा, स्वास्थ्य, सर्वांगीण विकास, सहभागिता और जीवन के अधिकार को चुनौती देता है। यद्यपि बाल विवाह काफी सदियों से चली आ रही एक कुरीति है जिससे भारत देश वर्तमान में भी अछूता नहीं है। पौराणिक काल में तो बाल विवाह की प्रथा तब नहीं थी। पुराणों में स्वयंवर, गंधर्व विवाह, असुर विवाह आदि का भी उल्लेख तो मिलता है लेकिन बाल विवाह का उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता है। बाल विवाह तो देन है मध्ययुग की, जब कि बालिकाओं को आतताईयों की कुदृष्टि से बचाने के लिये अभिभावक उन्हें विकसित होने के पूर्व ही विवाह के बंधन में बांधने लगे। इस मध्ययुग में जब बाल विवाह प्रचलन में आया तब से अब तक कई विवाह ऐसे हुयें हैं जिसमें तो वर-वधू बने बच्चे अंगूठा चूसते हुए मां की गोद में बैठे रहते हैं , तो कई झूलों में ही कर दिये जाने की जानकारी भी प्राप्त होती है, तो अनेक मामलों में दस-ग्यारह वर्ष की उम्र में ही शादी कर दी जाती है। इस आयु में बच्चे न तो शारीरिक तथा न ही मानसिक रूप से ही विवाह जैसी गंभीर जिम्मेदारी निभाने के लायक होते हैं। दरअसल में जितना यह सामाजिक सवाल है उससे ज्यादा कहीं राजनैतिक है। जब तक इस समस्या को राजनैतिक दृष्टि से नहीं देखा जायेगा तब तक इसके हल होने की संभावना नगण्य है। ग्रामीण अंचल व पिछड़े इलाकों में आज भी पुरातन परम्पराओं अर्थात हमारी रुड़ीवादी सोच का ही नतीजा है कि आज भी समाज में हम वही पुरानी सोच लिए बैठे हैं और इसके चलते काफी संख्या में बाल-विवाह सम्पन्न होते है।
आखिर बालविवाह क्यों ?
सामाजिक सोच क्या है? इसके बारे में तो कुछ नहीं कहा जा सकता।
पर मेरा निजी विचार ये है कि जब इसमें लड़की पक्ष का ज्यादा हाथ होता है क्योंकि लड़की पक्ष में प्राय: ये देखा जाता है कि लड़का अमीर खानदान से हैं, अच्छे परिवार(संस्कार) से है। और सोचते हैं कि लड़की खुश रहेगी इसी सोच के आधार पर लड़की पक्ष के लोग अपनी बेटी के भविष्य का भला सोचते हुए शादी कर देते है उम्र को नज़रअंदाज करते हुए, वो नहीं चाहते की कोई अच्छा रिश्ता हाथ से निकल जाए। बालविवाह का सीधा संबंध बालक-बालिका पर असमय जिम्मेदारी लादने से शुरु होता है और बाद में स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों पर जा ठहरता है। बालविवाह बच्चों को उनके बचपन से भी वंचित कर देता हैं ।
आखिर क्यों किये जाते हैं बाल विवाह? बालविवाह के पक्षधर इस संबंध में तर्क देते हैं कि :
1) बड़ी होने पर लड़की की सुरक्षा कौन करेगा ? -बालिकाओें की सुरक्षा एक गंभीर मामला है।
2) कम उम्र में क्यूंकि लड़का भी कम पढ़ा लिखा होगा तो वर पक्ष की दहेज संबंधी मांग भी कम रहेगी अर्थात लड़की को आर्थिक बोझ की दृष्टी से देखना
3) छोटी उम्र में चयन के विकल्प (वर तथा परिवार) खुले होते हैं।
4) लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना अर्थात लड़कियों की शिक्षा का निचला स्तर
5) लड़की को आर्थिक बोझ समझना अर्थात वो सोचते हैं की लड़की तो बोझ होती है जितनी जल्दी यह जिम्मेदारी खत्म हो सके उतना ही अच्छा है।
6) यदि बड़ी होकर लड़की ने कोई गलत कदम उठा लिया (स्वयं वर ढूंढ लिया) तो समाज को कौन समझायेगा ?
7) विवाह चाहे कम उम्र में करते हैं पर विदा तो लड़की को समझदार होने के बाद ही करेंगें।
सामाजिक प्रथाएं एवं परम्पराएं(रुड़ीवादी सोच)
9) जागरूकता की कमी अर्थात शिक्षा का प्रचार-प्रसार की अभाव
10) लड़की दूसरे घर में जल्दी सामंजस्यता बिठा लेती है।
11) लड़की पक्ष के लोग ये नहीं चाहते की कोई भी अच्छा रिश्ता हाथ से निकल जाए,इसीलिए भी वो शादी करते समय उम्र को नज़रअंदाज कर देते है
12) लड़के पक्ष के मन में हमेशा लगातार लड़कियों की संख्या का गिरता ग्राफ रहता है, इसिलिय जब उन्हें कोई अच्छे परिवार से रिश्ता आया होता है तो वो भी उम्र की सीमा को ध्यान में न रखते हुए शादी कर देते हैं।
इन सब कारणों से बाल विवाह हमारे समाज में अभी तक किये जाते रहे हैं व इन तर्कों के आगे इन बच्चों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व शैक्षणिक विकास कहीं गौण/नगण्य/तुच्छ हो जाता है। दरअसल में यह समस्या एक जटिल रुप धारण किये हुये हैं । गरीबी और निरक्षरता भी इसका एक प्रमुख कारण है। इस कुरीति के पीछे कई और कुरीतियां भी हैं जैसे दहेज प्रथा-दहेज प्रथा के कारण भी लोग जल्दी शादी कर देते हैं क्योंकि इस समय तक वर की अपनी इच्छायें सामने नहीं आती हैं और शादी सस्ते में निपट जाती है।
बाल विवाह के कुप्रभाव/दुष्परिणाम :-
जो लड़कियां कम उम्र में विवाहित हो जाती हैं उन्हें अक्सर
1) कम उम्र की लड़कियां, जिनके पास रुतबा, शक्ति एवं परिपक्वता नहीं होते, अक्सर घरेलू हिंसा सम्बन्धी ज़्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं।
2) कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है जो उनकी निरंतर गरीबी का कारण बनता है।
3) बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गरीबी के भंवरजाल में फंसा देता है।
4) जब वे शारीरिक रूप से परिपक्व न हों, उस स्थिति में कम उम्र में लड़कियों का विवाह कराने से मातृत्व सम्बन्धी एवं शिशु मृत्यु की दरें अधिकतम होती हैं।
5) आपसी वैचारिक मतभेदों के कारण रिश्ता/शादी टूटने(तलाक) की संभावनाएं ज्यादा प्रबल होती है।
6) भगवान न करें पर यदि विवाह के पश्चात पति की मृत्यु हो जाती है तो लड़की को उम्र भर के लिए विधवा का जीवन यापन करना पड़ेगा, बाल विधवा किसी भी समाज व परिवार के लिए शुभ कभी नहीं कही जा सकती, तत्पश्चात उसका(लड़की) जीवन नरकमय हो जाता है।
सुगना फाउंडेशन-मेघलासिया |
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।
प्रेम और ममता की मूरति, पूरी तो गढ़ जाने दो।।
अभी खेलने के दिन इसके, हुआ न बचपन पूरा है।
कच्ची कली अभी बगिया की, बचपन अभी अधूरा है।।
अभी बृद्धि की ओर बेल है, थोड़ी-सी बढ़ जाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।
जीवन बगिया में तितली का, सैर-सपट्टा होने दो।
कच्ची गागरिया के तन को, कुछ तो पक्का होने दो।।
अभी-अभी तो हुआ सबेरा, धूप तनिक चढ़ जाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।
करके पीले हाथ उऋण हैं, समझो यह नादानी है।
तुमने लिख दी एक कली की, फिर से दुःखद कहानी है।।
चन्द्रकला की छटा धरा पर, थोड़ी-सी इठलाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।
तनिक भूल से जीवन भर तक, दिल का दर्द बहा करता।
अगर न सुदृढ़ नींव होइ तो, सुन्दर महल ढहा करता।।
चिड़िया के सँग-सँग बच्चों को, थोड़ा-सा उड़ जाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।
वैसे हमारे देश में बालविवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है, लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता। बालविवाह एक सामाजिक समस्या है। अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है | इस सामाजिक अपराध को समाप्त करने के लिए समाज के युवा वर्ग को आगे आना होगा। केवल सरकार के प्रयासों से या कोई कानून बना देने मात्र से ही कोई भी सामाजिक बुराई समाप्त नहीं हो सकती। उनके उन्मूलन/निवारण की जिम्मेदारी पूरे समाज पर है।
बाल विवाह जैसी बुराइयों को दूर करने के लिए युवा वर्ग के साथ-साथ स्वयं सेवी संस्थाओं की भागीदारी भी जरूरी है। समाज में जागरूकता की लहर की शुरुआत ही युवा वर्ग से होनी चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में सामाजिक बुराइयों को दूर करने संबंधी वाद-विवाद एवं भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए। उन्हे शिक्षा प्राप्त करने, दहेज न लेने, दहेज न देने, अपने आस-पास बाल-विवाह को रोकने का संकल्प दिलवाना चाहिए। इसी प्रकार के कारगर एवं सकारात्मक कदम ग्राम पंचायतें, समाज कल्याण संस्थाएं, आंगनबाड़ियां और स्वयंसेवी संस्थाएं भी उठाए, तो समाज में जागरूकता लाना संभव है।
सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति के लिए सब से पहले यह बहुत जरूरी है कि हर व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करे। सभी स्कूल जाने योग्य बच्चों का स्कूलों में पंजीकरण करके उनकी नियमित शिक्षा को सुनिश्चित किया जाए, विशेष रूप से नारी शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाना बहुत जरूरी है। शिक्षित लोग ही एक स्वस्थ समाज का नव निर्माण करने में सक्षम होते है। इस दिशा में जन साधारण अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
जिन परिवारों/घरों में बाल-विवाह हुआ था और अब बच्चे(लड़का-लड़की) खुश नहीं है उस वैवाहिक जीवन से तो वो बहुत बड़ा सहयोग/योगदान दे सकते हैं इस बुराई का अंत करने में, मेरा मानना ये है की उनको भी आगे आना चाहिए और आज के समाज को जागरूक करना चाहिए कि जो गलती उन्होंने की थी वो अब फिर से कोई न करें{(पर अगर यहाँ भी मन(हृदय की बात) से कहूं तो कोई आगे नहीं आएगा क्यूंकि कोई भी खुश नहीं होता किसी दुसरे को खुश देखकर, उसकी सोच रहती है कि मैं खुश नहीं हूँ तो कोई दूसरा भी खुश क्यों हो, हम इस बात से जयादा दु:खी नहीं होते की हमारी समस्या का कोई समाधान नहीं है बल्कि इस बात से ज्यादा दु:खी की उसके(दुसरे) पास कोई समस्या ही क्यों नहीं है)}
समय तो लगेगा पर इस प्रथा किया बंद किया जा सकता है क्यूंकि इस प्रथा को चलाने वाले भी हम ही है और अगर हम चला सकते हैं तो रोक भी तो सकते हैं बस जरूरत है तो समाज को जागरूक करने की और इसकी शुरुआत भी हमें हमारी खुद की सोच को बदलकर करनी होगी।
एक पंक्ति उनके लिए जो जिन्हें शंका है की क्या ये बंद भी हो सकती है:
कौन कहता है की आसमां में छेद हो नहीं सकता? एक पत्थर तो तबियत से उछालो भाइयों/बहनों/मित्रों।
(ये सुझाव श्री गुरु जम्भेश्वर पेज की बाल-विवाह सम्बन्धित पिछली पोस्ट पर आई टिप्पणी से जुड़ा है)
अगर किसी घर/परिवार में अभी तक विवाह ही हुआ है और लड़की को विदा(ससुराल नहीं भेजा है) नहीं किया है और दोनों-पक्षों(लड़का-लड़की) के विचार नहीं मिल रहे हैं तो?
जिन परिवारों/घरों में अभी तक विवाह तो गया है पर अगर लड़की और लड़के पक्ष में इससे सहमत नहीं है तो उनको दोनों पक्षों की सहमती से उस रिश्ते को यहीं खत्म कर देना चाहिए, क्यूंकि ये सिर्फ दिन,सप्ताह या महीने की बात नहीं है की कैसे भी कट जाएगा ये समय। ये तो पूरी ज़िन्दगी का बन्धन है। इसीलिए इससे पहले की रिश्ता बोझ बन जाए उसे खत्म करना ही सही है। मेरे घर में मेरे दादा जी एक कहावत बोलते हैं वो यहाँ पूर्ण सही बैठ रही है कि : कि "पग्ड़े ग़ी गोली हूँ आज गा लट्ठ ज्यादा ठीक है"
यानी जो रिश्ता कल मनमुटाव के साथ खत्म होने वाला है अगर उसे ख़ुशी से आज ही खत्म कर दिया जाए तो वो बहुत ज्यादा बेहतर है।
नोट: ध्यान रहे ये मेरे निज़ी विचार है जरूरी नहीं है की आप सभी सहमत होंगे इससे, आपके विचार भिन्न हो सकते हैं।
आपसे भी विनती है की आप भी अपने विचार(शंका) और सुझाव बताएं जिससे इस सामाजिक बुराई को मिटाया जा सके और समाज का उत्थान हो सके।
धन्यवाद।।
साभार पेज
श्री गुरु जंभेश्वर
द्वारा : दीपिका जांगू
nice post is shared above know about our Daily hindi newspaper we are the link between public and Government, leading provider of service news and information that improves the quality of life of its readers by focusing on hindi health news, personal finance,jaipur news in hindihindi education news, travel, cars, news and opinion, aware public about there rights, new information, national news in hindi and international newsin hindi, sports news,entertainment news,business news and market updates.Sanjeevni Today is leading provider of Hindi News,Latest News,Current News in Hindi,Hindi News Paper
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