आपने मेरी पिछली पोस्ट में "गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका"के बारे देखा था इस बार भी मैं आपके लिए
हिंदू धर्म
देवता भी गो पूजा करते हैं । गाय में सब देवताओं का दिव्यत्व है । एक धर्मपूर्ण दिन का आरंभ उसकी पूजा से होता है । विभिन्न धार्मिक त्योहारों में उसकी प्रमुखता है । विशेषतः संक्रांति और दीपावली गाय से जुड़े उत्सव हैं । विभिन्न अनुष्ठानों में गव्य उत्पाद आवश्यक हैं । इस प्रकार गाय हमारे जीवन का अभिन्न अंग है ।
वेद पुराणों में गाय
यः पौरुषेण क्रविषा समंक्ते यो अश्वेन पशुना यातुधानः ।
ये अघ्न्याये भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्चः ॥
हे अग्निदेव ! अपनी लपटों से उन दानवों के सर जला दो, जो मनुष्यों और घोड़े और गाय जैसे प्राणियों का मांस भक्षण करते और गाय का दूध चूसते हैं । (रिक संहिता ८७-१६१)
प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।
शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया संसदेम ॥
हे परमेश्वर, अन्य सब देवताओं के साथ हमारी खुशी के लिये शुभ और विशाल गो स्थान बनाकर उन्हें गाय और बछड़ों से भर दें । हम गो धन का आनंद लें और गायों की सेवा करें । (रिक संहिता १० – १६९-४)
सा विश्वाय़ूः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।
गायें यज्ञों में रत सभी ऋषियों और यज्ञों के आयोजकों के आयुष्य को बढ़ायें । गाय यज्ञ के सभी संस्कारों का समन्वय करती है । अपने दूध के नैवेद्य से गाय यज्ञ के सभी देवताओं को संतुष्ट करती है । (शुक्ल यजुर्वेद १-४)
आ गावो अग्मन्नुत भद्रकम्रन् सीदंतु गोष्मेरणयंत्वस्मे ।
प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्स्युरिंद्राय पूर्वीरुष्सोदुहानाः ॥
यूयं गावो मे दयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।
भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ॥
गो माताओं ! तुम अपने दूध और घी से दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों को स्वस्थ । अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को शुद्ध करती हो । सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है । (अथर्ववेद ४-२१-११ और ६)
सिख धर्म
सिख मत में गो रक्षण
दसवें गुरु गोविंद सिंह ने पंडित पृथ्वीराज को बताया कि खालसा पंथ की स्थापन अर्थव्यवस्था की देखभाल, अच्छे व्यवहार, गायों, ब्राह्मणों और दलितों की रक्षा के लिये किया गया ।
गुरु गोविंद सिंह के प्रथम गुरु न केवल गाय बल्कि किसी भी प्राणी के वध के विरुद्ध थे ।
१८७१ में ३,१५,००० सिखों ने गुरु रामसिंह के नेतृत्व में गोवध प्रतिबंध हेतु अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन किया था
बौद्ध धर्म में गो रक्षण
गौतम बुद्ध ने गायों के महत्व और उपयोगिता की शिक्षा दी । उन्होंने गो हत्या का विरोध किया और गो पालन को अत्यंत महत्व दिया ।
यथा माता सिता भ्राता अज्ञे वापि च ज्ञातका ।
गावो मे परमा मित्ता यातु जजायंति औषधा ॥
अन्नदा बलदा चेता वण्णदा सुखदा तथा ।
एतवत्थवसं ज्ञत्वा नास्सुगावो हनिं सुते ॥
माता, पिता, परिजनों और समाज की तरह गाय हमें प्रिय है । यह अत्यंत सहायक है । इसके दूध से हम औषधियाँ बनाते हैं । गाय हमें भोजन, शक्ति, सौंदर्य और आनंद देती है । इसी प्रकार बैल घर के पुरुषों की सहायता करता है । हमें गाय और बैल को अपने माता-पिता तुल्य समझना चाहिए । (गौतम बुद्ध)
गोहाणि सख्य गिहीनं पोसका भोगरायका ।
तस्मा हि माता पिता व मानये सक्करेय्य च् ॥ १४ ॥
ये च् खादंति गोमांसं मातुमासं व खादये ॥ १५ ॥
गाय और बैल सब परिवारों को आवश्यक और यथोचित पदार्थ देते हैं । अतः हमें उनसे सावधानी पूर्वक और माता पिता योग्य व्यवहार करना चाहिए । गोमांस भक्षण अपनी माता के मांस भक्षण समान है । (लोकनीति ७)
जैन धर्म में गो रक्षण
भगवान महावीर
जैन धर्म का मूलाधार अहिंसा होने के कारण जैन लोग गाय तो क्या, किसी पशु-पक्षी को कष्ट नहीं पहुँचाते ।
जब जैन धर्म चरम पर था तो जैनी गो रक्षा में सक्रिय थें । उन्होंने विशाल गोशालाएँ निर्मित की और गो पालन को जीवन शैली बनाया । गायों पर क्रूरता, उन्हें भूखा रखना, बोझ से लादना, अंग भंग, सभी पर कानूनी प्रतिबंध था ।
गायों की संख्या से किसी के धन का आकलन होता था । एक व्रज गौकुल = १०,००० गायें । सर्वाधिक गायों के १० स्वामियों को ‘राजगृह महाशतक’ एवं ‘काशियचुलनिपिता’ कहाँ जाता था ।
महावीर ने अपने अनुयायियों को ६०,००० गायों के पालन का आदेश दिया था ।
आनंद ने महावीर का अनुयायी बनकर ८ गोकुल संचालित करने का संकल्प लिया ।