दिवाकर उदय हुआ या अस्त क्या कहूं।
जैन धर्म में वर्तमान के वर्धमान कहे जाने वाले, सैंकड़ों आचार्य होते हुए भी आचार्य श्री के नाम से एक मात्र नाम जो जाना जाता हो ऐसे जैन धर्म की धुरी माने जाने वाले महा तपस्वी महा संत पूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज अपनी मध्यलोक की यात्रा पूर्ण कर संसार से विहार कर गए। महावीर के वंशज वो नही जो कुल गोत्र से उनकी पीढियां हों अपितु वो हैं जो चारित्र से उनके पथ पर चले उनके अनुगामी बने।
विद्यासागर जी महाराज ने एक आचार्य, योगी, चिंतक, दार्शनिक और समाजसेवी, इन सभी भूमिकाओं में समाज का मार्गदर्शन किया। वे बाहर से सहज, सरल और सौम्य थे, लेकिन अंतर्मन से वज्र के समान कठोर साधक थे। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य व गरीबों के कल्याण के कार्यों से यह दिखाया कि कैसे मानवता की सेवा और सांस्कृतिक जागरण के कार्य एक साथ किये जा सकते हैं।
आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन युगों-युगों तक ध्रुवतारे के समान भावी पीढ़ियों का पथ प्रदर्शित करता रहेगा। मैं उनके सभी अनुयायियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूँ.... शौर्य प्रताप उर्फ सवाई सिंह राजपुरोहित